Sunday, February 15, 2009

गुलाबी चड्ढी और हिन्दुस्तानी मर्द का विरोध

दोस्तों,
अजब चू.... पंथी है, एक इस एक चीज ने आजे के प्रबुद्ध वर्ग के मर्दों का असली चेहरा दिखा दिया एक लड़की ने तथा कथित नरपुंगवों के तमाम विरोधों से भरे एक ब्लॉग, एक अपील ने तमाम प्रबुद्ध लोगो का (जो ब्लॉग में लिखे वो प्रबुद्ध.... बाकि साले चू.....)
आज नेट और हिन्दी में तमाम चिट्ठो में पढ़ा की बहुत से भाई लोगो की जल रही है की इस देश की लड़कियों में इतनी चेतनता कँहा से आ गई की वो किसी बात, किसी विचारधारा का विरोध करने की सोच सकें ???
लड़कियों, भारत में रहना है तो फ़िर इन तथाकथित बुद्धिजीविओं की तो सुनना पड़ेगा ना... जो तुम्हे ये बताएँगे की क्या दिखाओ, क्या नही, विरोध करना है तो कैसे करो...थू है ऐसी सोच के लोगो पर... जो प्रतीक को ले कर मुह चला रहे है.... विरोध के पीछे की वजह इनके लिए कोई मतलब नही रखती....
अरे लड़कियां है, अपनी तमीज में रहना चाहिए....ये थोड़ी ना की जो मन वो दिखाने लगो, जो मन वो करने लगो... फ़िर अभी जो हुआ, वो तो हद ही हो गई... चड्ढी...चड्ढी दिखाने लगी तुम लोग ?? चड्ढी जैसे प्रतीकों का इस्तेमाल इस भारत देश में वो भी लड़कियों के द्वारा???? हद है बेशर्मी की....
किसी मित्र ने कहा ब्रा का इस्तेमाल करो अपना विरोध दिखाने को... मान्यवर ब्रा भी अन्तःवस्त्र है और चड्ढी भी... फ़िर अन्तर करने की वजह क्या है????
दोस्तों, सही जगह पर सोचो.... विरोध की वजह जानो... प्रतीकों पर दिमाग ना लगते हुए ये देखो... की भारत की लड़कियों में भी अब जाग्रति आ रही है.... उसका स्वागत करो ना की उसको ले कर जल-भुन कर खाक होते हुए... इस विरोध को लैंगिक बनने की कोशिशों में "चड्ढी का बदला कंडोम" जैसी मानसिकता का स्वागत करो....
जागो भारत जाओ....

Tuesday, February 3, 2009

जींस पहन लिया तो अनाचार हो गया....

सुबह सुबह समाचार देखने के लिए कंप्यूटर खोला... समाचार मिला एक की साहब, एक मर्द को यह सहन नही हुआ की उसकी पत्नी जींस पहन कर बाज़ार जाए और उसको जींस पहना हुआ देख कर उसके भीतर का पुरूष जाग गया और उसने अपनी धर्मपत्नी की उधर भरे बाज़ार ही पिटाई कर दी की ये कोई पोषक है जो भी भले घरो की औरते या लड़कियां पहनती हो....??? पूरा समाचार इस लिंक पर है :
http://timesofindia.indiatimes.com/India/Man_assaults_jeans-clad_wife_for_dressing_up_like_men/rssarticleshow/4072709.cms

क्या हुआ है हमारी सभ्यता को? ये वो ही देश है ना ? जिस देश में महिलाओ के लिए कहा जाता था : यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता.... किस तरफ़ जा रहे है हम? प्रगति की तरफ़ या तालिबान की ...????

Sunday, February 1, 2009

मंगलोर pub आतंक

मित्रो...
हद है हमारी नपुंसकता की... सच कह रहा हू हद है... हम तालिबानी मानसिकता के शिकार कुछ कुंठित गुंडों (जिनको यह लगता है की वो इस देश को खाकी निकर पहना कर चलाएंगे, और जिन्हें ये भी नही पता की हिंदू समाज में लड़कियों/महिलाओं की क्या स्थिति थी.... काश !! की कोई इन नासमझ लोगो को इतिहास का थोड़ा भी ज्ञान करा देता...) के आगे घुटने टेक रहे है।
बंधु, इस देश में महिलाओ की स्वनंत्रता कभी भी बाधित नही रही (इस देश के गुलाम होने से पहले) पहले के ज़माने में pub नही होते थे... पर महिलाओ को, लड़कियो को पूरी स्वंत्रता थी की वो जो मन करे... शायद ये ही वो पहला सभ्य देश/समाज था जिसने महिलाओ को पुरुषों के सामान अधिक दिए थे और जिन्हें वो समाज का एक बराबरी का हिस्सा मानता था। अपने से (मर्दों से) किसी भी तेरह कमतर नही....
फ़िर आज जब हम २१ शताब्दी में है ये भावना किधर से आई को लड़कियों का नाच, उनका अपने पुरूष मित्रो से मिलना उनके साथ बैठना या नाचना हमारी सभ्यता के लिए कलंक है?
कौन है इस सोच का जिम्मेदार???

Saturday, January 31, 2009

किस से कहू???

मित्रों, फ़िर आया हूँ...
आपका यह मित्र ढांचागत परियोजनाओ से जुड़ा हुआ है... और पहले शाशकीय सेवा करने के उपरांत अब प्राइवेट सेक्टर में काम करता है... वो ही हूँ मै कोई और नहीं जो पहले राज्य की सेवा कर रहा था... हाँ बहुत छोटे स्तर पर इस देश में विडम्बना है ये कि इस महान भारतवर्ष में देश के विकास के लिए परियोजना बनाना उन लोगो के हाथो में रहता है (मै जिला स्तर कि बात कर रहा हूँ) जिनको शायद यह नहीं पता कि सरकार के पास जो भी धन है यह बेचारी जनता के खून पसीने से आता है... तो वो भद्रजन अपने "विवेक" का इस्तेमाल करते हुए, तमाम ऐसे कामो के लिए धन का आवंटन करते है जिनका कोई मतलब ही नहीं होता... हाँ, ठीक है कि आप गरीबी रेखा के नीचे के लोगो के लिए रोजगार का अवसर दे रहे है परन्तु मान्यवर, ये ही अवसर उस कार्य को करके भी पैदा किया जा सकता है जिससे जनता के धन कि भी कीमत उचित रूप से मिल सकती है... उदहारण के रूप में मै बता रहा हू कि कच्ची सड़क बना कर हम क्या देते है गाँव कि जनता को? कुछ नहीं... आज कच्ची सड़क बनती है, फ़िर बारिश में कट जाती है और गाँव फ़िर से बिना संपर्क मार्ग के रह जाता है..... अपनी किस्मत पर रोते हुए.... कितना उचित होता कि हम (हमारे विद्वान योजनाकार) कच्चे संपर्क मार्ग कि अवधारणा को छोड़ कर पक्के संपर्क मार्ग की सोच लेते... रोजगार भी मिलता, सदाकी भी मिलती और हमारे जैसे करदाताओ को भी अभिमान होता की हाँ साहब हमारे दिए गए पैसे का सदुपयोग हुआ.....
ऐसे बहुत सारी बातें है... जिनमे योजनागत खामी है... विस्तार से जिक्र करूँगा पर तब तक अपने विचार दीजिये....
क्या मेरा सोचना ग़लत है?????

आख़िर कब तक???

मित्रो, मेरी समझ में एक बात नही आ रही। आप सब भी जानते ही होंगे की देश में पोलियो से बचने के लिए टीका करण का अभियान चलाया जा रहा है। करोडो रुपया बर्बाद किया जा रहा है । फ़िर भी पोलियो जस का तस है... हर साल सरकार बताती है कि पोलियो का लक्ष्य पूरा कर लिया गया। फ़िर १० दिनों बाद टीवी या न्यूज़ पेपर से पता चलता है कि भाई... पोलियो अभी ख़तम नही हुआ, अमुक राज्य के तमुक गाँव में फ़िर से मिल गए पोलियो ग्रस्त बच्चे... ॥
करण क्या है? क्यो नही ख़तम होता ये पोलियो? क्यो नही करती सरकार सख्ती? हम इस देश के नागरिक... कब तक अपने दिए गए टैक्स कि बर्बादी होती देखते रहेंगे ? सिर्फ़ इसलिए कि कुछ सरफिरे लोगो कि समझ में बात नही आती कि भाई पोलियो ड्राप पिलाने से कोई नुकसान नही है... किसी के धर्म को, जाति को ख़तम करने के लिए नही बनती है दवा... दवा बनती है इंसानियत के लिए... लोगो कि भलाई के लिए, उनको रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए... न कि उनकी जाति या धर्म को ख़तम करने के लिए...
दूसरी बड़ी बात है कि हमारे तमाम सरकारी अहलकार अपने काम को ईमानदारी से नही करते... देश बहुत आगे गया फ़िर भी अभी भी हमारे पास तमाम छोटी छोटी सुविधाए नही है.... पोलियो ड्राप आता है, उसको रखने के लिए एक विशेष तापमान की जरुरत होती है... उसके लिए उचित प्रबंध नही है हमारे पास... तमाम बड़े बड़े कारपोरेट है जो क्रिकेट, फिल्म्स और पता नही किन किन बातो के लिए पैसे देते रहते है... तमाम गैर सरकारी संस्थान जिनको देश विदेश से पता नही कितना धन मिलता है... और उस तरह के ही तमाम संस्थान जो इन तरह के आयोजनों से जुड़े रहते है किसी के पास धन की कमी नही है... और धन मिलता भी रहता है अभी भी मिल ही रहा है... वो सब क्यो नही करते ऐसा इंतजाम कि जो भी दवा आई है... उसका उचित इस्तेमाल हो... वो बर्बाद ना हो... क्यो नही किया जाता तापमान को नियंत्रित रखने का प्रबंध ?
दोस्तों... मै ना तो समाज सेवक हू ना ही कोई डॉक्टर ... मै इन देश का एक आम नागरिक हु जो अपनी गाढ़ी कमाई से ३०% कर आयकर देता हू.... इसलिए मुझे दर्द है... हमारे धन की ऐसी बद-इन्तजामी ???
क्या हम कुछ कर सकते है???? सुझावों का स्वागत है...